सर्वमतिमात्रं दोषाय

 

सर्वमतिमात्रं दोषाय, युक्तिरनुगन्तव्या।  

न हि सर्वे गुणिनः, सर्वे च दोषिनः। उत्तररामचरितम् — प्रथम अंक, भवभूति


पदान्वय

  • सर्वमतिमात्रं दोषाय — सभी मतों को केवल मान लेना दोष है

  • युक्तिः अनुगन्तव्या — तर्क और युक्ति का अनुसरण करना चाहिए

  • न हि सर्वे गुणिनः — सभी लोग गुणी नहीं होते

  • सर्वे च दोषिनः — और सभी दोषयुक्त भी नहीं होते


हिंदी अर्थ

सभी मतों को केवल मान लेना दोष है; तर्क का अनुसरण करना चाहिए। न तो सभी लोग गुणी होते हैं, और न ही सभी दोषयुक्त।


English Translation

Blind acceptance of all opinions is a flaw; one must follow reason. Not all are virtuous, nor are all faulty.

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